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शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

अंगरेजी की मारी हिन्दी बेचारी

राष्ट्रीय भाषा हिंदी का भारत में वही स्थान है जो राष्ट्रीय खेल हॉकी की है। जिस तरह से हॉकी पर क्रिकेट हावी है उसी तरह हिंदी पर अंग्रेजी। आज थोडा सा पढ़ा लिखा व्यक्ति भी हिंदी अपनाने में अपनी प्रतिष्ठा का हनन समझते हैं। उत्तर भारतीय को यदि छोर दिया जाये तो कमोबेश सभी राज्यों में हिंदी का यही हाल है. दक्षिण के राज्यों में तो स्थिति और भी चिंताजनक है। जब तक कानूनी और मानसिक रूप से सभी संस्थाओं और कार्यालयों में कार्य करने का माध्यम हिंदी और केवल हिंदी नहीं होगा तब तक हिंदी की स्थिति सुधरने वाली नहीं है।

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