tag:blogger.com,1999:blog-73781184692205904862024-03-08T12:06:14.041+05:30हरिओम दास अरूण ब्लॉगरचनात्मक अभिव्यक्ति की एक छोटी सी कोशिश....Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-22769812735592758312016-02-22T22:08:00.001+05:302016-02-22T22:08:10.298+05:30माता-पिता की वन्दना<p dir="ltr"><b>माँ और पिता पर कुछ पंक्तियाँ आपके बीच निवेदित करता हूँ.. </b><br>
<b>जरूर पढियेगा...</b><br>
<b>**********</b><br>
<b>माता-पिता बड़े ही जतन से, प्यार से, विभिन्न प्रकार के झंझटों से जुझते हुए अपने सामर्थ्य के अनुसार अपने बच्चे को पालते हैं, पोषते हैं, उन्हें शिक्षा देते हैं इस उम्मीद के साथ कि एक दिन हमारा बच्चा हमारे परिवार का, हमारे समाज का, हमारे देश का नाम सारे जगत में रौशन करेगा.... </b><br>
<b>एक अच्छा इंसान बनेगा...</b><br>
<b>देश का सच्चा नागरिक बनेगा.. </b><br>
<b>********</b><br>
<b>माता-पिता बच्चों के जीवन और भविष्य के निर्माता हैं...</b><br>
<b>माता-पिता के बिना बच्चों का जीवन नीरस है... </b><br></p>
<p dir="ltr"><b>मुझे नहीं मालूम कि किनकी माँ जीवित हैं और किन्होंने माँ को खो दिया है. </b><br>
<b>पर मेरा व्यक्तिगत मत ये है कि </b><br>
<b>जिनकी माँ जीवित हैं, जिनके पिता जीवित हैं </b><br>
<b>वो दुनियाँ के सबसे सम्पन्न लोग हैं...</b><br>
<b>वो दुनियाँ के सबसे अमीर लोग हैं...</b><br>
<b>वो दुनियाँ के सबसे धनाढ्य लोग हैं...</b></p>
<p dir="ltr"><b>********</b></p>
<p dir="ltr"><b>एक मिनट के लिए बचपन में लौटियेगा.. </b><br>
<b>याद कीजियेगा.. </b><br>
<b>जब हम बहुत छोटे थे, </b><br>
<b>माँ की गोद में थे, </b><br>
<b>माँ का स्तनपान करते थे </b><br>
<b>तब माँ का एक स्तन मुँह में लेकर </b><br>
<b>हमने उस माँ को </b><br>
<b>और दुसरे स्तन पर </b><br>
<b>अपने छोटे-छोटे पैरों से </b><br>
<b>ना-जाने कितनी बार मारा, </b><br>
<b>पर उस माँ ने </b><br>
<b>हमें दुध पिलाना बंद नहीं किया.</b></p>
<p dir="ltr"><b>लात खाकर भोजन देने की शक्ति उस परमपिता परमेश्वर ने दुनियाँ में यदि किसी को दी है </b><br>
<b>वो सिर्फ उस माँ को दी है..</b><br>
<b>माँ के अलावा ये ताकत किसी के पास नहीं है..</b><br></p>
<p dir="ltr"><b>याद कीजियेगा...</b><br>
<b>उन दिनों में जब हम चौकों में, </b><br>
<b>रसोई में बैठकर खाना खाया करते थे </b><br>
<b>और माँ खाना बनाती थी..</b><br>
<b>उस वक्त थाली पर बैठकर </b><br>
<b>हमनें जब भी इधर-उधर देखा </b><br>
<b>तो माँ समझ गई </b><br>
<b>और उसने नमक का डब्बा </b><br>
<b>हमारी तरफ सरका दिया.. </b><br>
<b>हमारे बिना बोले समझनेवाली वो माँ </b><br>
<b>जब हम खो देते हैं </b><br>
<b>वो माँ हमें बहुत याद आती है.. </b></p>
<p dir="ltr"><b>वो माँ जो हमारे परीक्षा देते जाते वक्त </b><br>
<b>दही की कटोरी लेकर, </b><br>
<b>शगुन बनकर </b><br>
<b>आकर खड़ी हो जाती थी, </b><br>
<b>उसे हम खो देते हैं </b><br>
<b>वो माँ हमें बहुत याद आती है.. </b></p>
<p dir="ltr"><b>*****</b><br>
<b>रमेश शोज की चार पंक्तियाँ ....</b></p>
<p dir="ltr"><b>बहुत रोते हैं लेकिन दामन हमारा नम नहीं होता, </b><br>
<b>इन आँखों के बरसने का कोई मौसम नहीं होता.. </b><br>
<b>मैं अपने दुश्मनों के बीच भी महफूज रहता हूँ, </b><br>
<b>मेरी माँ की दुआओं का खजाना कम नहीं होता.. </b></p>
<p dir="ltr"><b>स्वामीनाथ पांडे की तीन पंक्तियाँ </b><br>
<b>जरा गौर कीजियेगा </b><br>
<b>स्वामीनाथ पांडे ने तीन पंक्तियों को आधार बनाकर एक उपन्यास लिख दिया....</b></p>
<p dir="ltr"><b>उसने लिखा...</b></p>
<p dir="ltr"><b>एक विधवा माँ थी, </b><br>
<b>उसके दो बेटे थे.. </b><br>
<b>एक बेटा नीचेवाले माले पर रहता था, </b><br>
<b>दुसरा बेटा उपरवाले माले पर रहता था.. </b><br>
<b>विधवा माँ 15 दिन एक बेटे के यहाँ खाना खाती थी, </b><br>
<b>विधवा माँ 15 दिन दुसरे बेटे के यहाँ खाना खाती थी, </b><br>
<b>पर ये उस विधवा माँ का दुर्भाग्य था कि </b><br>
<b>साल में जो जो महीनें 31 दिनों के होते थे </b><br>
<b>उस एक दिन </b><br>
<b>उस विधवा माँ को उपवास रखना पड़ता था.. </b></p>
<p dir="ltr"><b>9 महीनें पेट में रखनेवाली माँ </b><br>
<b>जब एक जवान बेटे को एक दिन भारी लगने लगी तब उस बेटे को समझाने के लिए </b></p>
<p dir="ltr"><b>कवि ओम व्यास "ओम" ने कुछ पंक्तियाँ माँ के लिए लिखी...</b><br>
<b>पढियेगा..</b><br>
<b>यात्रा कीजियेगा मेरे साथ.. </b><br></p>
<p dir="ltr"><b>माँ, माँ संवेदना है, भावना है, एहसास है, </b><br>
<b>माँ, माँ संवेदना है, भावना है, एहसास है,</b><br>
<b>माँ, माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है ..</b><br>
<b>माँ, माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है, </b><br>
<b>माँ, माँ मरूस्थल में नदी या </b><br>
<b>मीठा-सा झरना है</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ, माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है, </b><br>
<b>माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है, </b><br>
<b>माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ झुलसते दिनों में कोयल की बोली है, </b><br>
<b>माँ मेहदी है, कुमकुम है, सिंदुर है, रोली है</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ कलम है, दवात है, स्याही है, </b><br>
<b>माँ परमात्मा की स्वंयम एक गवाही है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है, </b><br>
<b>माँ फूँक से ठंढ़ा किया हुआ कलेवा है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ अनुृष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है, </b><br>
<b>माँ जिन्दगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है.. </b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ चुड़ी वाले हाथों की मजबुत कंधों का नाम है, </b><br>
<b>माँ काशी है, कावा है और चारों धाम है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ चिंता है, याद है, हिचकी है, </b><br>
<b>माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ चुल्हा-धुँआ-रोटी और हाथों का छाला है, </b><br>
<b>माँ जिंदगी की करूआहट में अमृत का प्याला है...</b></p>
<p dir="ltr"><b>माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है, </b><br>
<b>माँ बिना इस सृृष्टि की कल्पना अधुरी है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>तो माँ की ये कथा अनादि है, ये अध्याय नहीं है, </b><br>
<b>और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है..</b><br>
<b>माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>तो माँ का महत्व दुनियाँ में कम हो नहीं सकता, </b><br>
<b>और माँ जैसा दुनियाँ में कुछ हो नहीं सकता.</b></p>
<p dir="ltr"><b>तो मैं कविता की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ, </b><br>
<b>मैं दुनियाँ की सब माताओं को प्रणाम करता हूँ... ����</b></p>
<p dir="ltr"><b>जहाँ माँ, संतान के अस्तित्व की धूरी है </b><br>
<b>वहीं पिता के बिना माँ की जिन्दगी अधुरी है.</b></p>
<p dir="ltr"><b>किसी ने शेर कहा.... </b></p>
<p dir="ltr"><b>पके फल पेड़ों से रिश्ता तोड़ जाते हैं, </b><br>
<b>और अपाहिज बाप हो जाए तो बेटे छोड़ जाते हैं..</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता जब पुत्र को बाजार ले जाता है </b><br>
<b>और जेब में 50 रूपये होते हैं </b><br>
<b>और बच्चा 200 रूपये के सामान को खरीदने की जिद्द करता है </b><br>
<b>उस वक्त </b><br>
<b>एक पिता की विवशता और बच्चे की जिद्द..</b><br>
<b>इसके बीच के एहसास में खड़े होकर... </b></p>
<p dir="ltr"><b>कवि ओम व्यास "ओम" की कविता की कुछ</b><br>
<b>पंक्तियाँ पढ़िए...</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता क्या होता है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है,</b><br>
<b>पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता अंगुली पकड़े बच्चे का सहारा है,</b><br>
<b>पिता कभी कुछ खट्टा, कभी खारा है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है,</b><br>
<b>पिता धौंस से चलनेवाला प्रेम का प्रशासन है</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है,</b><br>
<b>पिता छोटे से परिदें का बड़ा आसमान है</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता अप्रदर्शित, अनंत प्यार है,</b><br>
<b>पिता है तो बच्चों को इंतजार है...</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता से ही बच्चों के ढ़ेर सारे सपने हैं,</b><br>
<b>पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं..</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता से परिवार में प्रतिपल राग है,</b><br>
<b>पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है,</b><br>
<b>पिता गृहस्थ-आश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति है,</b><br>
<b>पिता रक्त में दिए हुए संस्कारों की मूर्ति है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता एक जीवन को जीवन का दान है,</b><br>
<b>पिता पिता दुनियाँ दिखाने का एहसान है,</b></p>
<p dir="ltr"><b>पिता सुरक्षा है अगर सिर पर हाथ है,</b><br>
<b>पिता नहीं तो जीवन अनाथ है </b></p>
<p dir="ltr"><b>तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो</b><br>
<b>पिता का अपमान नहीं, उनपर अभिमान करो..</b></p>
<p dir="ltr"><b>क्यूँकि माँ-बाप की कमी को कोई बाँट नहीं सकता,</b><br>
<b>और ईश्वर भी उनके आशीषों को काट नहीं सकता..</b></p>
<p dir="ltr"><b>विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है,</b><br>
<b>माँ-बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है..</b></p>
<p dir="ltr"><b>विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्राएं व्यर्थ है,</b><br>
<b>यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ है.. </b></p>
<p dir="ltr"><b>वो खुशनसीब हैं, माँ-बाप जिनके साथ होते हैं,</b><br>
<b>क्यूँकि, माँ-बाप के आशीषों के हाथ हजारों हाथ होते हैं....</b></p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-25355096674998541392016-01-29T07:56:00.001+05:302016-01-29T08:09:46.811+05:30कहीं नहीं<p dir="ltr"><b>अक्सर रात को </b><br>
<b>भूखा रहता हूँ मैं </b><br>
<b>जब कभी</b><br>
<b>खा रहा होता हूँ </b><br>
<b>अचानक फुसफुसाहट सी </b><br>
<b>होती है कानों में </b><br>
<b>मानो कोई कह रहा हो </b><br>
<b>मेरी तरफ से भी </b><br>
<b>खा लीजियेगा एक रोटी </b><br>
<b>चारों ओर घूमती निगाहें</b><br>
<b>और फिर सन्नाटा.... </b><br>
<b>एहसास होते ही मानो </b><br>
<b>भूख मिट सी जाती है </b><br>
<b>होठ सुख से जाते हैं </b><br>
<b>आँखे अविरल शून्य </b><br>
<b>निहार रही होती है</b><br>
<b>घर के दीवारों पर</b><br>
<b>आँखे अपने ही सपनों को </b><br>
<b>ढूंढ रही हो जैसे</b><br>
<b>उन दीवारों पर..</b><br>
<b>ऑंखें देख रही हो जैसे </b><br>
<b>दीवारों पर बने आकृति पर </b><br>
<b>हाँ आकृति </b><br>
<b>बोलती ऑंखें </b><br>
<b>मुस्कुराते होठ </b><br>
<b>रोटी की तरफ </b><br>
<b>अंगुली दिखाती आकृति </b><br>
<b>हाँ वही आकृति </b><br>
<b>तेरी मुस्कुराती आकृति </b><br>
<b>तेरी हमशक्ल आकृति.. </b><br>
<b>और अचानक जैसे </b><br>
<b>एहसास हुआ हो </b><br>
<b>थाली में पड़ी रोटी</b><br>
<b>अब सुख चुकी है</b><br>
<b>हाथ में लगी सब्ज़ी </b><br>
<b>अब सुख चुकी है </b><br>
<b>एक निवाला भी नहीं जाता </b><br>
<b>अब हलक में </b><br>
<b>अचानक मुस्कुराती आकृति </b><br>
<b>जैसे बोल पड़ती है..</b><br>
<b>क्यों? क्या हुआ?? </b><br>
<b>क्यों होठ सुख गए हैं तेरे </b><br>
<b>क्यों भूख मिट गयी है तेरी</b><br>
<b>क्यों पागल हो मेरे प्यार में </b><br>
<b>अब ना मैं तेरी ना तू मेरा </b><br>
<b>फिर क्यों ढूंढते हो मुझे </b><br>
<b>इन निर्जीव सी दीवारों में </b><br>
<b>क्यों भावनाओं के </b><br>
<b>भंवर-जाल में फँसता है तू </b><br>
<b>क्यों  रो रो कर </b><br>
<b>अपना दिल दुखाता है तू </b><br>
<b>अब कभी </b><br>
<b>तू मुझे याद ना करना </b><br>
<b>सदा के लिए </b><br>
<b>मुझे तुम भूल जाना </b><br>
<b>अब मेरे लिए तू </b><br>
<b>कभी मत रोना</b><br>
<b>मेरे जाने के बाद मेरे लिए</b><br>
<b>अंतिम आंसू बहा लेना </b><br>
<b>अब तेरे लिए मैं</b><br>
<b>कहीं नहीं हूँ </b><br>
<b>कहीं नहीं.....</b><br>
<b>.......   .......</b><br>
<b>..  ............</b><br>
<b>........... .... </b><br>
कहीं न<b>हीं </b><br>
<b>.....  !!!!</b></p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-88079853111242957752016-01-27T07:38:00.001+05:302016-01-27T07:41:38.612+05:30दिल का घोंसला<p dir="ltr">सूरज चढ़ता था <br>
और उतरता था..<br>
चाँद चढ़ता था <br>
और उतरता था..<br>
जिंदगी कहीं भी <br>
रुक नही पा रही थी,<br>
वक्त के निशान <br>
पीछे छुटे जा रहे थे,<br>
लेकिन मैं वहीं खड़ा हूं <br>
जहाँ तुमने मुझे छोडा था<br>
बहुत बरस हुए,<br>
तुझे, मुझे भुलाए हुये !<br>
मैं उम्र की दहलीज़ पर खरा हूँ !! <br>
और तू उम्र की पहले पड़ाव पर<br>
अमरुद का वह पेड़, <br>
जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था<br>
नए जमींनवालों ने काट दिया है !!!<br>
जिनके साथ मैं जिया, वह खो चुके है<br>
मैं भी चंद रोजों में गुजरने वाला हूं<br>
पर,<br>
मेरे दिल का घोंसला, <br>
जो तेरे लिए मैंने बनाया था,<br>
अब भी तेरी राह देखता है...</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-29633165126140276952016-01-26T22:43:00.001+05:302016-01-27T13:21:19.132+05:30कितना अंतर होता है<p dir="ltr">कितना अंतर होता है <br>
बीते हुए कल और आज में...<br>
कल कागज़ के चंद टुकड़ों को <br>
पाने के लिए कितना ताना-बाना<br>
बुना करते थे हमदोनो <br>
और आज <br>
व्हाट्सऐप पे मेसज डिलीट करते <br>
तेरी उँगलियाँ नहीं थकती,<br>
घंटों गुजर जाते हैं मुझे<br>
जिस अंतर्वेदना को गढ़ने में..<br>
कितना अंतर होता है <br>
बीते हुए कल और आज में..<br>
कल रात के सन्नाटे में पागलों की <br>
तरह सडकों पे मेरा मोबाइल पे<br>
"आई लव यू" चिल्लाना <br>
और आज <br>
यूँ ही दिन गुजर रहे हैं<br>
तेरे गुड़ मोर्निग गुड नाईट के <br>
मेसेज का ख़ामोशी से <br>
रिप्लाई करने में..<br>
कितना अंतर होता है <br>
बीते हुए कल और आज में..<br>
कल दिन और रातें <br>
गुजर जाती थीं <br>
तेरी मासूम सी बातों में <br>
जब कान से चिपके मोबाइल <br>
और रात के अँधेरे में <br>
तुझे सुनना-अपनी सुनाना<br>
और आज <br>
इस बदनसीब की आवाज <br>
पहुँचती नही <br>
तेरे दिल के किसी कोने में...<br>
कितना अंतर होता है <br>
बीते हुए कल और आज में.. <br>
कल कितना जूनून था <br>
मुझे पाने की <br>
सारे जगत को छोड़ <br>
संग भाग जाने की, <br>
और आज समझ जाना कि <br>
वो नादानी थी मेरी उम्र की..<br>
कितना अंतर होता है <br>
बीते हुए कल और आज में.. <br>
कल था जिसके आँखों का नूर, <br>
आज लाचार-बेवस मैं<br>
दोस्त बन गया रिश्ते निभाने में <br>
कितना अंतर होता है <br>
बीते हुए कल और आज में.. <br><br><br><br><br><br><br></p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-74091807721251219762013-02-28T17:30:00.000+05:302013-02-28T17:31:31.282+05:30जीवन का दस्तूर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यादें हैं जो बेचैन करती हैं<br />
अश्क आँखों से बहती है<br />
<div>
<div>
दिल में एक हुक सी उठती है</div>
<div>
जुबाँ से कुछ बयाँ नहीं होता<br />
<br />
मन बेचैन सा रहता है</div>
<div>
सोचता हूँ <br />
चेहरा उदास होता है <br />
उम्र के इस मोड़ पर<br />
ना जाने क्यों अतीत धुंधली नहीं पड़ती<br />
लक्षण हैं ये मौत के<br />
या फिर जीवन का दस्तूर है<br />
<br /></div>
<div>
<div>
</div>
</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-40851025247396719742012-02-17T12:14:00.000+05:302012-02-17T12:16:39.908+05:30lovely as a tree<p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >I think that I shall never see</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >A poem lovely as a tree.</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"> </p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >A tree whose hungry mouth is prest</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >Against the earth's sweet flowing breast;</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"> </p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >A tree that looks at God all day,</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >And lifts her leafy arms to pray;</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"> </p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >A tree that may in Summer wear</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >A nest of robins in her hair;</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"> </p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >Upon whose bosom snow has lain;</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >Who intimately lives with rain.</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"> </p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >Poems are made by fools like me,</span></p> <p style="margin-top: 0px; margin-bottom: 0cm; " align="center"><span style="FONT-SIZE: 11pt" >But only God can make a tree.</span></p>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-81139028661918398152010-10-15T08:46:00.003+05:302010-10-15T08:53:52.275+05:30खत्म होती-सी कहानियाँ क्यों है...कुछ तो बता ए-जिन्दगी ये हैरानियाँ क्यों है,<br />हर कदम, हर मोङ पर परेशानियाँ क्यों है,<br />आसुँ के धारे और मायूसी का अन्धेरा हैं,<br />हर पल ज़िन्दगी में गमों कि मेहरबानियाँ क्यों है,<br />हर तरफ तन्हाइयां, हर तरफ मायूसियाँ मिली,<br />इस भरी दुनियाँ में मेरे लिए वीरानियाँ क्यों हैं,<br />मैंने तो अभी आगाज़ किया है ज़िन्दगी का,<br />फिर खत्म-सी होती ये कहानियाँ क्यों है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-65026354015123825552010-01-22T21:35:00.006+05:302016-01-26T22:59:00.901+05:30जीवन - गीतज़िन्दगी जिंदादिली का नाम है।<br>आँखों में मस्ती लबों पर जाम है।<div><br>अतीत के गह्वर में घिरा न कर<br>व्यतीत हुआ वह व्यर्थ है सोचा न कर<br>कर्तव्यपथ पर अहर्निश बढ़ता ही चल<br><span class="">पीछे पलट कर देखना क्या काम है</span><br><span class="">ज़िन्दगी जिंदादिली का नाम है। </span><div><br><span class="">भविष्य के भुलयों में भुला न कर</span><br><span class="">स्वप्निल हिलोरों पर झुला न कर</span><br><span class="">ये खवाब है जिसकी कोई ताबीर नहीं</span><br><span class="">मरीचिका भंवरजाल का परिणाम है</span><br><span class="">जिंदगी जिंदादिली का नाम है। </span></div><div><br><span class="">वर्त्तमान में जिंदा है जीते ही जा</span><br><span class="">सोमरस अंजलि में भर-भर पीते ही जा</span><br><span class="">जीवन जीने की कला का नाम है</span><br><span class="">सच है अरे ये जोग तो निष्काम है</span><br><span class="">जिंदगी जिंदादिली का नाम है </span><br>आँखों में मस्ती लबों पर जाम है।</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-76353301001460159762009-12-01T20:27:00.003+05:302009-12-01T20:36:12.245+05:30तिनका सुख-दुःख कातिनका-तिनका सुख क्या होता है<br /><span class="">पूछो </span>उस चिड़िया से<br />जिसने बालकनी में अपना घोंसला बनाया है<br />रस्सी, धागे, प्लास्टिक, घास, पत्ते और रुई<br />न जाने कितनी चीजों से सजाया है<br />तिनका-तिनका दुःख क्या होता है<br />पूछो उस चिड़िया से<br />जिसके घोंसले का तिनका-तिनका<br />बालकनी के शो के लिए<br />अभी-अभी मालकिन ने<br />बाहर फिंकवाया है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-53755169695151252852009-11-25T19:12:00.003+05:302009-12-01T21:57:42.972+05:30पीड़ानगर के बड़े बाज़ार में सुनार और लुहार की दुकानें अगल-बगल थीं। सुनार जब कार्य करता तो उसकी दुकान से साधारण शोर होता किंतु लुहार के काम करते समय कान के परदे फाड़ देने-जैसी तेज़ आवाज होती।<br />संयोग से एक दिन सोने का कण छिटककर लुहार की दुकान में आ गिरा। वहां उसकी भेंट लोहे के कण से हुई। दोनों एक-दुसरे को देखकर आत्मीयता से मुस्कुराये पर अपनी जिज्ञासा रोकने में असमर्थ सोने का कण, लोहे के कण से पूछ बैठा, "बंधु हम दोनों को एक जैसा ही अग्नि में तपना पड़ता है और फिर सामान रूप से हथौड़े के प्रहार सहने पड़ते हैं। मैं यह सारी यातना मौन रहकर सहन करता हूँ किंतु तुम बहुत शोर मचाते हो। " लोहे के कण ने सोने के कण की बात का अनुमोदन करते हुए कहा, "तुम्हारा कथन शत- प्रतिशत सही है परन्तु तुम पर चोट करनेवाला लोहे का हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नही है किंतु मेरा वह सहोदर बंधु है।"<br />फिर जरा देर मौन रहकर लोहे का कण व्यथित स्वर में बोला, "परायों की अपेक्षा अपनों द्वारा दी गई चोट की पीड़ा अधिक असह्य होती है।"Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-62728289178950448542009-11-23T14:24:00.007+05:302009-11-24T22:36:07.594+05:30दृष्टिकोणएक बोध - कथा है- वीरान जंगल में एक सुंदर मकान था। एक साधू ने उसे देखकर सोचा- कितना सुंदर स्थान है यह ! यहाँ बैठकर ईश्वर का ध्यान करूँगा। एक चोर ने देखा तो सोचा - वाह ! यह तो सुंदर स्थान है, चोरी का माल लाकर यहाँ रखूँगा। एक दुराचारी ने देखा तो सोचा - यह तो अत्यन्त एकांत स्थान है, दुराचार के लिए इससे उत्तम स्थान और कहाँ मिलेगा ? एक जुआरी ने देखकर सोचा - अपने साथियों को यहाँ लाऊंगा, यहाँ बैठकर हम जुआ खेलेंगे।<br />अलग - अलग दृष्टिकोण होने के कारण एक ही मकान को प्रत्येक व्यक्ति ने अलग - अलग रूप में देखा। इसलिए आवश्यकता है दृष्टिकोण बनाने की। जैसा दृष्टिकोण होगा, वैसा ही अंतःकरण होगा। फल भावना पर निर्भर है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-76877783519973510872009-11-23T12:55:00.006+05:302009-11-23T14:48:02.297+05:30वृत्तियाँवृत्तियाँ दो हैं -अनुकूल और प्रतिकूल। जो मन को अच्छी लगे वह अनुकूल एवं जो मन के विरुद्ध हो वह प्रतिकूल कही जाती है। कोई भी काम जो मन के अनुकूल होता है उसमे स्वाभाविक ही प्रसन्नता होती है और जो मन के प्रतिकूल उसमे दुःख होता है। उस दुःख को भगवान् का भेजा हुआ पुरस्कार समझकर उसमे से प्रतिकूलता को निकल देना चाहिए और यह विचार करना चाहिए की जो कुछ भी होता है भगवान् की इच्छा से ही होता है। हमलोग अनुकूल में तो प्रसन्न होते हैं और प्रतिकूल में द्वेष करते हैं। भला, इस प्रकार कहीं भगवान् मिल सकते हैं? भगवान् की प्रसन्नता में ही प्रसन्नता का निश्चय करना चाहिए। जो बात मन के अनुकूल हो उसमें तो कठिनाई है ही नही, लेकिन जो मन के प्रतिकूल हो उसको अनुकूल बना लेना चाहिए।<br />यह कहने या लिखने में जितना आसान है व्यवहारिक जीवन में उतना ही कठिन। इसे आसान बनाया जा सकता है सत्य का पालन करके। वाणी से सत्य बोलना, व्यवहार सत्य करना, सत्य आचरण करना, मन और वचन से दूसरों को कष्ट न देना- इन्ही कुछ नैतिक पहलुओं पर मनन किया जाय तो मन की प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदला जा सकता है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-63716739278844811332009-11-22T12:42:00.008+05:302009-11-22T12:57:22.663+05:30वक़्त बहुत थोड़ा हैपेड़ पर बैठी सभी बुलबुलें सहम-सी गयीं<br />फिर किसी शाख को इन मनचलों ने तोडा है<br /><br />एक चिंगारी भी नफरत की बहुत है लेकिन<br /><span class="">प्यार जितना भी मिले ज़िन्दगी में थोड़ा है</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">दिल के शीशे को सदा शक से बचाकर रखना</span><br /><span class="">प्यार की राह में ये सबसे बड़ा रोड़ा है</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">मैंने कुछ भी न कहा और तुमने सुन भी लिया</span><br /><span class="">दिल से दिल तक ये तुमने कौन तार जोड़ा है</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">बात बिगड़ी हो अगर बढके बनालो यारों</span><br /><span class="">बात ने तोडा है दिल, बात ही ने जोड़ा है</span><br /><span class=""></span><br /><span class="">मौके हरदम हैं यहाँ खूब बिगड़ने के लिए</span><br /><span class="">ख़ुद सम्हालने को मगर वक़्त बहुत थोड़ा है।</span><br /><span class=""></span>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-38337443133290879502009-11-21T09:10:00.005+05:302009-11-24T16:47:30.057+05:30अंतस का प्रकाशअंतस का अन्धकार जब हमारे आत्मबल के प्रकाश से टकराता है तब हमारे अन्दर विद्यमान चेतना का बिन्दु, जिसे इश्वर का अंश कहा जाता है वही हमारे अस्तित्व व् विवेक की रक्षा करता है। अतः हमें अपने आत्मबल को और प्रखर करना है। हमारी चेतना जितनी बलबती होगी, उतनी ही हमारे अन्दर व्याप्त ऊर्जा अंतस के अन्धकार को मिटाने में समर्थ होगी। हमें अपने आत्मबल से चेतना को परिष्कृत करना होगा। चेतना पर जमी हुई विकारों की परतों को आत्मबल और विवेक के माध्यम से ही हटाया जा सकता है। इसकी निगरानी हमारे द्वारा समय-समय पर करते रहना ही हितकर होगा, ताकि भविष्य में आने वाली विपदाओं से बचा जा सके। यदपि आत्मबल हमारे लिए कवच का काम करता है, लेकिन हम ऐसा काम ही क्यों करें जिससे आत्मबल का प्रयोग बचाव के लिए करने की नौबत आए, बल्कि इसका प्रयोग रचनात्मक कार्यों और परहित में किया जाना चाहिए। परमात्मा ने हमें शरीर दिया, बुद्धि-विवेक दिया ताकि इनका सही इस्तेमाल करके जरुरतमंदों की मदद की जा सके और प्रभु का प्रिय बना जा सके।<br />चेतना ही प्राण है, जिसे जीवन कहते हैं, जो प्रभु के अनुग्रह से ही हमें प्राप्त हुआ है। साथ ही इस दुर्लभ मानव शरीर को हमें निर्मल रखते हुए आराधना करनी है। जिसका प्रतिफल व्यष्टि और समष्टि, दोनों का ही कल्याण करेगा। परमात्मा ने हमें ऐसे इस संसार में कुछ ऐसे काम करने के लिए भेजा है जो मनुष्य ही अपनी बौद्धिक क्षमता के आधार पर कर सकता है, जैसे की दूसरों की सेवा, सहायता, परोपकार, ज्ञानदान आदि की अपेक्षा प्रभु ने विशेष अनुग्रह प्रदान किया है। हमें यह विचार करना चाहिए की हम प्रभु की अपेक्षाओं में कितने खरे उतरते हैं, यदि प्रयाप्त नही तो क्यों? क्या बाधा है इस मार्ग में। जब हम अपने को कर्तापन के अहम् से मुक्त कर लिंगे तो इस मार्ग में आने वाली समस्त बाधाएं स्वतः तिरोहित हो जायेगी। आत्मबल की शक्ति असीम है, क्योंकि यह प्रभु के अनुग्रह से ही हमें प्राप्त हुई है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-49248043593882393542009-11-21T09:01:00.000+05:302009-11-21T09:03:48.351+05:30सचिन बनाम ठाकरेसचिन का प्यार क्रिकेट है राजनीति नहीं. बाल ठाकरे और राज ठाकरे जैसे लोगों के कारण जो मुम्बई की छवि पुरे देश में धूमिल हो रही है उसे बचाने के लिए ही सचिन का बयान की "मुम्बई सभी भारतियों का है", क्या ग़लत है। इसमें कोई राजनीति नहीं है. .........और वैसे भी राजनीति किसी की बपौती नहीं की कोई किसी को राजनीति में आने या राजनीति करने पर टिका टिप्पणी करे.सचिन की वजह से अंतर्राष्ट्रीय छितिज़ पर भारत का सम्मान बढ़ा है और ठाकरे का नाम आते ही भाषा और क्षेत्रवाद की स्वार्थपरक राजनीति करनेवाले शख्शियत का चेहरा सामने आता है। जो कई बेगुनाह उत्तर भारतियों के क़त्ल का जिम्मेवार है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-24061487921024653202009-11-20T14:52:00.002+05:302009-11-20T14:55:40.196+05:30बाल श्रम पर लगे रोकआज बाल श्रम पर रोक के लिए कानून बना हुआ है, लेकिन बचपन के सौदागरों का कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रहा है. हज़ारों, लाखों गरीब बच्चे जो 8-15 वर्ष के हैं बाल मजदूरी कर रहे हैं। यह काम दुकानों, होटलों, खेतों में बोझा ढ़ोने में चल रहा है पर प्रशासन इसे रोक पाने में असमर्थ है। शादी के मौके पर यह बच्चे प्लेट धोने से पानी पिलाने का काम करते हैं। सर पर लाइट ढोने जैसे भारी और जानलेवा काम कर रहे हैं पर सरकार का कोई भी कानून इस पर रोक लगाने में असमर्थ है जिससे बच्चे मानसिक तौर पर विकलांग हो रहे हैं। उनके बचपन का शोषण हो रहा है वो स्कूल से वंचित हो रहे हैं। उन्हें उनका हक नहीं मिल रहा है. जिस उम्र में बच्चे खेलते-कूदते हैं और पढ़ते हैं, उस उम्र में उनसे कठोर से कठोर काम लिए जाते हैं। सरकार को इस पर कठोर कानून बनाकर इसे पूरी तरह से ख़त्म करना होगा, जिससे बच्चों का बचपन ना छीने और वे आगे जाकर देश और समाज में अपना योगदान दे सकें।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-87829855198522869522009-11-20T14:48:00.002+05:302009-11-20T14:52:01.377+05:30अंगरेजी की मारी हिन्दी बेचारीराष्ट्रीय भाषा हिंदी का भारत में वही स्थान है जो राष्ट्रीय खेल हॉकी की है। जिस तरह से हॉकी पर क्रिकेट हावी है उसी तरह हिंदी पर अंग्रेजी। आज थोडा सा पढ़ा लिखा व्यक्ति भी हिंदी अपनाने में अपनी प्रतिष्ठा का हनन समझते हैं। उत्तर भारतीय को यदि छोर दिया जाये तो कमोबेश सभी राज्यों में हिंदी का यही हाल है. दक्षिण के राज्यों में तो स्थिति और भी चिंताजनक है। जब तक कानूनी और मानसिक रूप से सभी संस्थाओं और कार्यालयों में कार्य करने का माध्यम हिंदी और केवल हिंदी नहीं होगा तब तक हिंदी की स्थिति सुधरने वाली नहीं है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-60239816542747508132009-11-20T14:47:00.000+05:302016-01-27T08:43:27.473+05:30हमारे तथाकथित नेता<p dir="ltr">ये हमारे देश की विडंम्बना ही है की आज़ादी के इतने वर्षो के बाद भी हम भारतीय गुलाम हैं। आज़ादी से पहले अंग्रेजों कि गुलामी और आज़ादी के बाद हमारे देश के कर्णधार कहे जाने तथाकथित नेताओं कि गुलामी। हमारे देश कि राजनीतिक व्यवस्था ही इन नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए ऐसी कर दी कि देश के भोले और मासूम लोगों में जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, सम्प्रदाय आदि के नाम पर जनता को भड़का कर अपनी राजनितिक रोटियाँ सेंक रहे हैं। इसमें जनता भी कम दोषी नही है, उन्हें उन नेताओं कि कुत्सित भावना समझना चाहिए जो उनके कंधे पर बन्दुक रखकर अपना लाभ उठाते हैं।</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7378118469220590486.post-88875411479204818972009-11-20T14:41:00.000+05:302009-11-20T14:43:01.338+05:30दलित और हमारी मानसिकतायह विडंम्बना ही है की आज हम कंप्यूटर युग में जी रहे हैं, देश को विकासशील से विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने की प्रयास की जा रही है लेकिन हमारी संकीर्ण मानसिकता में कोई बदलाव नहीं है। एक वो समय था जब राम राज्य में भी दलित शम्बूक का बध श्री रामचंद्र जी के हाथों हुआ, महाभारत काल में एकलव्य का अंगूठा काटा गया। ....... और आज भी समाज की स्थिति कुछ अलग नहीं है यह हमारी पौराणिक मानसिकता की उपज है। दलित ना होते हुए भी मैं समाज के सताए हुए इन सभी दलितों को सलाम करता हूँ।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/13878126058919209060noreply@blogger.com0