ये हमारे देश की विडंम्बना ही है की आज़ादी के इतने वर्षो के बाद भी हम भारतीय गुलाम हैं। आज़ादी से पहले अंग्रेजों कि गुलामी और आज़ादी के बाद हमारे देश के कर्णधार कहे जाने तथाकथित नेताओं कि गुलामी। हमारे देश कि राजनीतिक व्यवस्था ही इन नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए ऐसी कर दी कि देश के भोले और मासूम लोगों में जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, सम्प्रदाय आदि के नाम पर जनता को भड़का कर अपनी राजनितिक रोटियाँ सेंक रहे हैं। इसमें जनता भी कम दोषी नही है, उन्हें उन नेताओं कि कुत्सित भावना समझना चाहिए जो उनके कंधे पर बन्दुक रखकर अपना लाभ उठाते हैं।
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