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शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

दलित और हमारी मानसिकता

यह विडंम्बना ही है की आज हम कंप्यूटर युग में जी रहे हैं, देश को विकासशील से विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने की प्रयास की जा रही है लेकिन हमारी संकीर्ण मानसिकता में कोई बदलाव नहीं है। एक वो समय था जब राम राज्य में भी दलित शम्बूक का बध श्री रामचंद्र जी के हाथों हुआ, महाभारत काल में एकलव्य का अंगूठा काटा गया। ....... और आज भी समाज की स्थिति कुछ अलग नहीं है यह हमारी पौराणिक मानसिकता की उपज है। दलित ना होते हुए भी मैं समाज के सताए हुए इन सभी दलितों को सलाम करता हूँ।

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