सूरज चढ़ता था
और उतरता था..
चाँद चढ़ता था
और उतरता था..
जिंदगी कहीं भी
रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान
पीछे छुटे जा रहे थे,
लेकिन मैं वहीं खड़ा हूं
जहाँ तुमने मुझे छोडा था
बहुत बरस हुए,
तुझे, मुझे भुलाए हुये !
मैं उम्र की दहलीज़ पर खरा हूँ !!
और तू उम्र की पहले पड़ाव पर
अमरुद का वह पेड़,
जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
नए जमींनवालों ने काट दिया है !!!
जिनके साथ मैं जिया, वह खो चुके है
मैं भी चंद रोजों में गुजरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला,
जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है...
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