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शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

कहीं नहीं

अक्सर रात को
भूखा रहता हूँ मैं
जब कभी
खा रहा होता हूँ
अचानक फुसफुसाहट सी
होती है कानों में
मानो कोई कह रहा हो
मेरी तरफ से भी
खा लीजियेगा एक रोटी
चारों ओर घूमती निगाहें
और फिर सन्नाटा....
एहसास होते ही मानो
भूख मिट सी जाती है
होठ सुख से जाते हैं
आँखे अविरल शून्य
निहार रही होती है
घर के दीवारों पर
आँखे अपने ही सपनों को
ढूंढ रही हो जैसे
उन दीवारों पर..
ऑंखें देख रही हो जैसे
दीवारों पर बने आकृति पर
हाँ आकृति
बोलती ऑंखें
मुस्कुराते होठ
रोटी की तरफ
अंगुली दिखाती आकृति
हाँ वही आकृति
तेरी मुस्कुराती आकृति
तेरी हमशक्ल आकृति..
और अचानक जैसे
एहसास हुआ हो
थाली में पड़ी रोटी
अब सुख चुकी है
हाथ में लगी सब्ज़ी
अब सुख चुकी है
एक निवाला भी नहीं जाता
अब हलक में
अचानक मुस्कुराती आकृति
जैसे बोल पड़ती है..
क्यों? क्या हुआ??
क्यों होठ सुख गए हैं तेरे
क्यों भूख मिट गयी है तेरी
क्यों पागल हो मेरे प्यार में
अब ना मैं तेरी ना तू मेरा
फिर क्यों ढूंढते हो मुझे
इन निर्जीव सी दीवारों में
क्यों भावनाओं के
भंवर-जाल में फँसता है तू
क्यों  रो रो कर
अपना दिल दुखाता है तू
अब कभी
तू मुझे याद ना करना
सदा के लिए
मुझे तुम भूल जाना
अब मेरे लिए तू
कभी मत रोना
मेरे जाने के बाद मेरे लिए
अंतिम आंसू बहा लेना
अब तेरे लिए मैं
कहीं नहीं हूँ
कहीं नहीं.....
.......   .......
..  ............
........... ....
कहीं नहीं
.....  !!!!

बुधवार, 27 जनवरी 2016

दिल का घोंसला

सूरज चढ़ता था
और उतरता था..
चाँद चढ़ता था
और उतरता था..
जिंदगी कहीं भी
रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान
पीछे छुटे जा रहे थे,
लेकिन मैं वहीं खड़ा हूं
जहाँ तुमने मुझे छोडा था
बहुत बरस हुए,
तुझे, मुझे भुलाए हुये !
मैं उम्र की दहलीज़ पर खरा हूँ !!
और तू उम्र की पहले पड़ाव पर
अमरुद का वह पेड़,
जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
नए जमींनवालों ने काट दिया है !!!
जिनके साथ मैं जिया, वह खो चुके है
मैं भी चंद रोजों में गुजरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला,
जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है...

मंगलवार, 26 जनवरी 2016

कितना अंतर होता है

कितना अंतर होता है
बीते हुए कल और आज में...
कल कागज़ के चंद टुकड़ों को
पाने के लिए कितना ताना-बाना
बुना करते थे हमदोनो
और आज
व्हाट्सऐप पे मेसज डिलीट करते
तेरी उँगलियाँ नहीं थकती,
घंटों गुजर जाते हैं मुझे
जिस अंतर्वेदना को गढ़ने में..
कितना अंतर होता है
बीते हुए कल और आज में..
कल रात के सन्नाटे में पागलों की
तरह सडकों पे मेरा मोबाइल पे
"आई लव यू" चिल्लाना
और आज
यूँ ही दिन गुजर रहे हैं
तेरे गुड़ मोर्निग गुड नाईट के
मेसेज का ख़ामोशी से
रिप्लाई करने में..
कितना अंतर होता है
बीते हुए कल और आज में..
कल दिन और रातें
गुजर जाती थीं
तेरी मासूम सी बातों में
जब कान से चिपके मोबाइल
और रात के अँधेरे में
तुझे सुनना-अपनी सुनाना
और आज
इस बदनसीब की आवाज
पहुँचती नही
तेरे दिल के किसी कोने में...
कितना अंतर होता है
बीते हुए कल और आज में..
कल कितना जूनून था
मुझे पाने की
सारे जगत को छोड़
संग भाग जाने की,
और आज समझ जाना कि
वो नादानी थी मेरी उम्र की..
कितना अंतर होता है
बीते हुए कल और आज में..
कल था जिसके आँखों का नूर,
आज लाचार-बेवस मैं
दोस्त बन गया रिश्ते निभाने में
कितना अंतर होता है
बीते हुए कल और आज में..